परमेश्वर के सामने सृष्टि के सारे सम्बन्ध व्यर्थ

परमेश्वर के सामने सृष्टि के
सारे सम्बन्ध व्यर्थ 
( परमेश्वर का आदेश-निर्देश ही सर्वोच्च )

     भइया ! आप लोग थोड़ा सम्भलो ! अवतार बेला है, सारी आसुरी शक्तियाँ भी धरती पर हैं । सभी दैवीय प्रमुख शक्तियाँ भी धरती पर हैं । जब परमेश्वर आता है न, आप इसी से अंदाज कर लो, इसी हरिद्वार में प्रधानमंत्री जी को आना हो न, तो हजारों सी0आई0डी0 अफसर इसमें घूमने लगेंगे, चप्पा-चप्पा छान लेंगे, हरिद्वार नहीं, दस कि0मी0 बाहर तक । कोई भीखमंगा मिलेगा, तो कोई कहीं और कुछ बनकर मिलेगा तो चप्पा-चप्पा यानी आपके देहरादून के साहब जी तो चारो तरफ मिलेंगे ही मिलेंगे, दिल्ली वाले साहबजी लोग आपको यहाँ चारो तरफ छितराये मिलेंगे । हरिद्वार के साहब जी लोगों को छोड़ दें देहरादून के साहब जी लोग मिले तो क्या मिले, दिल्ली वाले साहब जी लोग न यहाँ चप्पा-चप्पा पर छितराये मिलेंगे । प्रधानमंत्री का कार्यक्रम होगा । तो क्या सारे ब्रह्माण्डों का मालिक जो सृष्टि का संचालक है जब वह धरती पर आयेगा तो क्या कोई प्रमुख देवी-देवता देवलोक में बैठा रहेगा । प्रमुख देवी-देवता जो है देवलोक में बैठे   रहेंगे ?
         अरे रामजी को जब आना हुआ तो शंकर बाबा हनुमान बनकर आ गये थे, सेवा के लिये । और देवता तो आये ही, बानर-भालू तो सब अइबे किये, शंकर बाबा भी सोचे कि ये तो बड़ा विचित्र हुआ, परमप्रभु तो आ रहे हैं, भू-मण्डल पर और हम कैसे सेवा करेंगे ? ये तो दस शीश रावण जो है ये तो हमारे दसों रूद्र रूप को सिर काटकर चढ़ाया है । ऐसे समर्पित शिष्य का मैं विरोध कैसे कर सकता    हूँ ? रामजी आये हैं रावण को मारने के लिये और रावण मेेरा पहले नम्बर का प्रमुख शिष्य है, भक्त है । दस शीश काटकर चढ़ाया है, ऐसे समर्पित भक्त की मैं कैसे रक्षा कर पाऊँगा, कैसे बचा पाऊँगा परमप्रभु से ? और मैं परमप्रभु की सेवा-सहायता कैसे कर पाऊँगा ? ऐसे समर्पित के खिलाफ । तब सोचे कि चल न, इस दसों को न किया है । हम एकादशः रूद्र बनकर चलेंगे । वही हनुमान एकादश रूद्र बनकर प्रकट हो गये ।
       एक बार पढि़ये न पूरा रामायण, आप कभी भी नहीं पाइयेगा कि शंकरजी की कोई बात रावण काटा हो, शंकरजी का कोई आदेश-निर्देश रावण ने कभी नहीं काटा । क्या एक बार शंकरजी कहने गये, रावण को बुलाकर कहे कि ये मेरे परमप्रभु है तू युद्ध मत कर, तू समर्पण कर जा । क्या शंकरजी का इतना फर्ज नहीं बनता था । ऐसे समर्पित शिष्य के रक्षा के लिये शंकरजी को इतना कहना भी फर्ज नहीं बनता था, लेकिन कैसे कह सकते थे, उनका परमप्रभु सामने थे, वे तो परमप्रभु के आदेश-निर्देश में रहेंगे, चलेंगे कि या मनमाना करेंगे । सारे सृष्टि के सम्बन्ध व्यर्थ है परमप्रभु के सामने । ऐसा समर्पित शिष्य जो अपने सिर तक काटकर चढ़ा दिया था, गुरुजी को । उसकी रक्षा, शंकरजी जैसे गुरुजी के लिये कदम नहीं बढ़ा सके । क्यों भाई परमप्रभु के खिलाफ में है । परमप्रभु खिलाफ में । और नहीं तो चाटुकारिता में हनुमान जी बनकर आ गये । अपने शिष्य के खिलाफ, हनुमान जी बनकर आ गये। मजबूरी थी सेवा में आना परमप्रभु की । मजबूरी थी सेवा में आना । कैसा सम्बन्ध शिष्य का, कैसा सम्बन्ध उसकी। कुछ नहीं । तो रामजी साधारण राजा नहीं थे, साधारण मनुष्य नहीं थे । तपसी नहीं थे, तपसी का वेश बनाया था, तपस्वियों के साथ रावण का उससे बदला फेरने के लिये तपसी का वेश लिया था । रावण का जो तपस्वियों के साथ अत्याचार था, जो जुल्म था, उसका बदला फेरने के लिये तपस्वियों का रूप लिया था ।

संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस