कृतयुग में व्यसन का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है ।

कृतयुग में व्यसन का कोईअस्तित्व ही नहीं होता है । 
       
       सृष्टि जब हुई जब सत्युग चालू हुआ, सत्युग का पहला चरण कृत युग कहलाता है । दूसरी चरण से फिर दुषित हो जाता है । पहले चरण में पवित्रता-विशुद्धता बनी रहती है । इसीलिए सत्युग के नाम पर प्राय वर्णन कृत युग कृत युग कहकर हुआ है । असली जो सत्य का समाज होता है जो कृत्य-कृत्य समाज होता है । भगवान् का वास्तविक समाज होता है वह कृत युग है । उस समय ये भोग वृति का कोई अस्तित्व नहीं रखता । जब कृत युग चालू हो जायेगा तब लड..की को यही नहीं मालूम रहेगा कि हम लड़का है कि लड.की है, लड.का को भी नहीं मालूम रहेगा की हम लड.का है कि लड.की है । लड.का-लड़की एक ही में रहेगें एक ही साथ सोये बैठेंगे पता ही नहीं चलेगा की लड.का है कि लड.की है । इतनी विशुद्धता रहेगी की उसमे व्यसन का कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा । व्यसन का कोई शब्द ही नहीं रहेगा यानी भोग-व्यसन की कोई भी आवश्यकता ही नहीं  रहेगी । लड़का, लड.की को नहीं देखना चाहेगा । लड़की लड.का को नहीं देखना चाहेगी । एक ही साथ सब घुल-मिल कर रहेगंे ही । कोई भेद भाव नहीं रहेगा । कहीं कोई भोग-व्यसन-सेक्स रही नहीं जायेगा। लड़का को लड.की से जोडने के लिए, लड.की को लड.का से जोड.ने के लिए गुरु को आगे आना पड़ता है--देख ऐसा कर सृष्टि रचना आगे बढ़ानी है तुम दोनों इस प्रकार से मिलन करो जिन्दगी में एक बार इस प्रकार से मिलन करो गुरु ही मिलन करायेगा। यदि एक बार में कोई सन्तान नहीं उत्पन्न होता है तो तीन बार एलाउ करायेगा पूरी जिन्दगी में । ऐसे धीरे-धीरे बढ़ते बढ़ते जो है आज तो बचाते बचाते लोग बचा नहीं पा रहे है। अब प्रकृति बचाना शुरू कर दी एड्स से । जो प्रकृति शुरू कराई थी वही प्रकृति अब भगाने में लगी है भाग भाग एड्स हो जायेगा; मर जाओगे, कोई दवा नहीं है इसलिए अन्जान अवैध यौन सम्बन्ध बन्द कर प्रकृति खुद एलान करना शुरू कर दी है । जब आदमी का वश काम नहीं किया तो प्रकृति शुरू करा रही है ।
        सत्ययुग का प्रारम्भिक विशुद्धताः सत्य था परमेश्वर था, मुक्ति था । कोई लड़का-लड़की नहीं सुनते थे किसी कि बाता । गुरुओं के द्वारा कहा गया सन्तान नहीं पैदा करोगे तो मुक्ति नहीं मिलेगा । अब मुक्ति के लालच में इस भ्रम जाल में भटक करके लड़का-लड.की हम मुक्त रहें, हमारी मुक्ति न जाये इसके लिए भी सम्बन्ध करके सन्तान पैदा करेगें । ये तथाकथित जो भोगी-व्यसनी प्रजापति गुरु होगें वही ये सब करायेंगे कि सन्तान नहीं पैदा करोगे तो मुक्ति ही नहीं मिलेगी उस को मुक्ति चाहिए जो करा  लीजिए । कृत युग के स्त्री-पुरुष को मुक्ति चाहिए जो चाहिये करा लीजिए । उस को क्या पता कि सेक्स क्या होता है यौन सम्बन्ध क्या होता है । उस को क्या पता कि व्यसन क्या होता है उस को एक ही पता है कि हम को मुक्ति चाहिये हम मुक्त बने रहे । पता नहीं क्या होगा, हमारी शरीर क्या करेगी तो मुक्ति मिलेगी । जो करा लीजिये हमारी मुक्ति बनी रहनी चाहिये । मुक्ति के लालच में शरीरों का सम्बन्ध करा दिया गया ।
      जब सृष्टि की रचना हुई यानी कृत युग में भगवान् धरती पर तो था नहीं भगवान् तो एक युग के जाने दूसरे युग के आने संगम वेला में अवतार होता है । एक युग जा रहा होता है दूसरा युग आ रहा होता है। युग शक्ति एक महान शक्ति है वह अपना वाला जैसा चाहती है वैसी परिस्थिति करालेती है । सत्य युग धरती को सत्य प्रधान बना लेगा किसी के वश का नहीं है । त्रेता जो है अपने लक्षण को करा लेगा किसी के वश का नहीं है । ये दो महान शक्तिया एक साथ टकरा नजाये इसीलिए परमेश्वर को भू-मण्डल पर उपस्थित रहना पड़ता है । ये बनी बनायी सृष्टि-है ये दो महान् शक्तियाँ टकरायेगी तो सृष्टि तहसनहस हो जायेगी, खेल ही खतम हो जायेगा इसलिए भगवान् स्वयं उपस्थित रहता है । वह जब रहेगा तब कोई शक्तियाँ आपस में नहीं टकरायंगी। सारी शक्तियाँ उस समय सीज रहती   है । सारी शक्ति परमेश्वर की है परमेश्वर के सामने वह कुछ कर नहीं सकती। वस वही कर सकती है जो करना चाहिये । वे आपस में टकरा नहीं सकती सारे पावर सीज कर दिये जायेगें । यहाँ क्या हो रहा है एक माँ के पेट से दो बेटा पैदा हो रहे है ।  पैदा होते ही 36 है जब बीबी आ गयी कुछ पैसा हो गया तब 3 बटा 6 हो गये यानी आधा-आधा कैसा परिवार ? कैसा माता-पिता ? कैसा हम हमारा अलग कर दो अलग हो गये बीबी लेकर के। बीबी हमारी है हम हैं कैसा माई बाप । तो पैदा होगें एक ही गर्भ से दो भाई 36 में रहे यानी एक का मुँह इधर दूसरे का मुँह उधर जब बीबी आ गई चार गो पैसा आया तो 3 बटा 6 बीच में मेड. बन गया । इधर तू रह मैं उधर रहूँगा । तो इस प्रकार से जो हैं आप यहाँ आये है। हमलोग ज्ञान से पुत्र पैदा करते है मल-मुत्र से नहीं पैदा करते जो घृणास्पद होगा । हम तो परम पवित्रतम ‘ज्ञान’ से पुत्र पैदा करते है । जो यहाँ आते है 63 बन यानी आपस में हिल-मिल कर रहो हम लोगों को 63 बना कर रखते है ।मुँह में मुँह मिलाकर रहो अपनत्त्व में रहो । जब अलग-अलग रहोगे, कभी भी टकरा सकते हो । पावर सब का सीज करेगें खवरदार सीमा से आगे बड़ने का कोशिश करोगे तो वश। अपने सीमा तक रहो सब का पावर सीज करके 36 हम रहने ही नहीं देगें दोनों को मिलाकर के 9 बना देगें यानी इस सृष्टि का सर्वोच्च अंक, इस ब्रह्माण्ड का सर्वोच्च अंक देखो तुम सर्वोच्च हो कि नहीं एक होकर के रहो। ‘एक बनो नेक बनो’! एक बनोगे न दो रहोगे न झमेल होगा एक बनो नेक बनो। जो अपना है प्रेम से देखो भाव से देखो। सब को अपना बहन-भाई देखों, बन्धु देखों यानी धरती के किसी भी देश का आदमी आता है वह तेरा अपना भाई है, तू अपने भाई के तरह से आदर-सम्मान करों । भाई माने झगड़ा-फँसाद वाला नहीं,भाई माने अपनत्व भाव- प्रेम वाला । भाई माने भुजा, भाई माने सहायक यानी एक शरीर की दो भुजायें, भाई माने अपनत्त्व, भाई माने बटवारा नहीं । भाई माने आप है तो मैं भी हूँ आप कुछ है तो मैं भी कुछ हूँ । यहाँ ऐसी भाई की परिभाष नहीं चलेगी । यहाँ उस भाई का परिभाषा चलेगा जहाँ एक हाथ से नहीं हो रहा है दूसरा भी सहायता करें ।
       एक दूसरे को तोड़े नहीं एक दूसरे को अपनत्व में सहायक रूप में लें । तो हम लोग शुरू ही करते है 63 से परिणाम क्या बनाते है 9 , यानी कहाँ का कौन कहा का कौन , एक चादर पर रोटी रख दीजिये , थाली भर सब्जी रख दीजिये सब उसी में खाने लगेगें । ऐसा नहीं खायेंगे तो इस परिवार का सदस्य नहीं कहलायेगे । यदि आप साफ-सुथरा रहते है  दूसरे को गन्दा  देख रहे हैं तो उस में हिस्सेदार आप भी हैं ।