हम ( जीव ) एवं ‘परमात्मा’ रूपी मन्जिल को जानें

हम ( जीव ) एवं ‘परमात्मा’
रूपी मन्जिल को जानें 

    सत्य क्या है, असत्य क्या है ? असत्य कितना है, सत्य कितना है इसकी जानकारी हमारे कार्य-व्यवहार से पता चलेगा। जो मैं दिखाने की बात कर रहा हूँ कि तीन भाग है सत्य में । पहला जानना, दूसरा देखना, देखना दो भागों में है-- एक जो मैं दिखाने को कह रहा हूँ वह और एक जो मेरे कार्य में व्यवहार में हो गुजर रहा है यह । देखना भी दो भागों में है-- एक वह जो मैं दिखाने को कह रहा हूँ वह देखना है कि मैं जो दिखा रहा हूँ , वह वास्तव में मेरे कार्य-व्यवहार में भी वह वैसा ही है कि नहीं । तो एक जानना, देखना; जानना-- जो मैं बोल रहा हूँ, जना रहा हूँ जानना है कि असत्य क्या है और सत्य क्या है ये जानना है कि असत्य क्या है और सत्य क्या है। जान लिये लेकिन इसका निर्णय कैसे होगा कि जो मैं जान रहा हूँ ये सत्य ही है । जो सुन रहा हूँ कि ये असत्य है और ये सत्य है तो इसकी पुष्टि कैसे होगी ? देखने से । पहले किसी भी जानकारी की  पुष्टि माने ऐसा प्रमाण जिससे हमारी जानकारी, जो हमारे अंदर एक जिज्ञासा बना हुआ कि सत्य है कि असत्य है तो इस तरह हमारे जिज्ञासा की पूर्ति जिससे हो, ऐसा तो हमारे जिज्ञासा है कि यह गलत नहीं सही है । तो ऐसे प्रमाण जिससे ये लग जाये हमको कि ये सही है । लग जाय हमको कि ये सही ही है, जब ऐसा मुझको सन्तुष्टि हो तो इसको पुष्टि कहेंगे । यानी हमारे इस जानकारी की पुष्टि संतोषप्रद प्रमाण कहाँ है तो दर्शन में है कि मैं जो बोल रहा हूँ, जैसा बोल रहा हूँ ऐसे ही देखने को मिल रहा है कि नहीं । मैं बोल रहा हूँ कि इस सत्संग कार्यक्रम में आप लोगों को जीव, ईश्वर, परमेश्वर का दर्शन मिलेगा । जो जिज्ञासु होंगे, जो श्रद्धालु होंगे वे भगवत् समर्पित-शरणागत भाव रखते होंगे, उनको भगवान् का साक्षात् दर्शन मिलेगा । ये मैं बोल रहा हूँ तो क्या ये दर्शन मिलेगा सही है । इसकी पहले जानकारी मिलेगी । जीव, ईश्वर, परमेश्वर क्या होता है ? कैसा होता है ? कहाँ रहता है ? कैसे मिलता है ? मिलता है तो हम उसे कैसे जानेंगे ? ये हम उसको कैसे जानेंगे ? ये सारी जानकारियाँ पहले आपको उस ग्रन्थ से मिलेगा। जानकारियाँ आप पर थोपी नहीं जायेगी । हमारे यहाँ मानने का विधान नहीं होता । हम न किसी का कुछ मानते हैं और न अपना किसी को कुछ मनवाते हैं । हम जानने का कोशिश करते हैं, जनाने का कोशिश करते हैं । आपसे भी मैं यही उम्मीद करता हूँ।  जब तक सत्य जानने को न मिले, सत्य देखने को न मिले तब तक मेरे बात को, किसी विषय-वस्तु को आप मत स्वीकार  कीजिये । गलत लग रहा है तो अभी आपको यहाँ एक नया सिस्टम है, जो धरती का कोई गु़रु नहीं दे रहा होगा । इस धरती का कोई गुरु ऐसा नहीं है बहुत देखें होंगे अब से देख लीजियेगा । यदि मेरी बात गलत लग रही हो तो आज से तो मेरे कार्यक्रम की शुरुआत है  कम से कम 22-23 तक तो आप के यहाँ मुझे रहना ही है । 22-23 तक मुझे रहना है । आप सब मेरे इन बातों का जाँच कर सकते हैं, अगल-बगल में, कहीं भी, जहाँ जिसको जानकारी हो वहाँ से। आप सब इन बातों की जाँच कर सकते हैं । कोई गुरु नहीं है जो खुले मंच से कुर्सी दे और माइक दे । कुर्सी दे और माइक दे यह छूट देते हुये कि आप मेरे खिलाफ जो कुछ जानते हो समाज में उसे रख दो । आप मेरे खिलाफ जो कुछ जानते हो उसेे समाज में रख  दो । मेरी कोई बात गलत लग रही हो आप बिल्कुल निर्भय होकर के इस समाज में रखें । यहाँ का कोई भी कार्यकर्ता आपको रखने में बाधक नहीं बन सकता, हस्तक्षेप नहीं कर सकता । अन्य गुरुजी लोगों के व्यवहार में और यहाँ के व्यवहार में अन्तर होगा । अन्य गुरु लोग कहेंगे बोलो और जब गुरुजी के खिलाफ बोलियेगा तो चार गो चेला आयेगा झपट करके आपको किनार कर देगा । कहीं भी ऐसा ही होता है, कहीं   भी । लेकिन यहाँ ऐसे किसी चेला शिष्य कार्यकर्ता को ऐसा इजाजत नहीं है । इतनी अनुशासनहीनता यहाँ नहीं है। जब हम आपको आदर-सम्मान से बुलाते हैं तो चेला और कार्यकर्ता की क्या हिम्मत है, उनकी क्या हिम्मत है आपको जाकर के कह दे कि ऐसा मत कहिये । मैं अपने खिलाफ आपसे सुनना चाहता हूँ वे कौन होते हैं आपको रोकने वाले । तो आप लोग निर्भयतापूर्वक, यहाँ जो कुर्सी मिली है, कुर्सी लीजिये, माइक लीजिये । पहले नम्बर पर मेरे खिलाफ जो भी जानकारी आप सभी को हो उसको समाज में रख दीजिये क्योंकि मैं धोखा का जीवन आपके बीच में नहीं जीना चाहता । मैं जो जीवन जी रहा हूँ ये खुल्लम-खुल्ला जीवन जीना चाहता हूँ । मैं ऐसा कुछ कर ही नहीं रहा हूँ जो मुझे नहीं करना चाहिये । ऐसा कुछ कर ही नहीं रहा हूँ जो मुझे नहीं करना चाहिये । वही कर रहा हूँ जो करना चाहिये। आपसे भी मैं वही उम्मीद कर रहा हूँ कि आप अपने जीवन को तभी सफल सार्थक बना सकते हैं जब आप अपने जीवन को ऐसे कर्तव्य से जोड.ें जो कर्तव्य करना चाहिये । वह मत कीजिये जो नहीं करना चाहिये। परिणाम इसका क्या निकलेगा कि ये ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर शंकरजी की बात मैं कर रहा हूँ शंकरजी की, उनकी पूजा करने की आवश्यकता नहीं  पड़ेगी । अहंकार में नहीं, शास्त्रीय प्रमाणों के माध्यम से अस्तित्त्व में, अस्तित्त्व  में । आप संदेह करते हैं कि जीव, ईश्वर, परमेश्वर का दर्शन हो जायेगा । आश्चर्य संदेह की तो कोई बात नहीं है ठीक है भाइ संदेह । एक बात मैं आपसे पूछूँ कि आपका मानव जीवन आपको मानव चोला मिला किसलिये है ? कोई विद्वानजी बताने का कोशिश करेंगे तो मैं मौका दे दूँगा । मिला ही है मानव जीवन केवल उसी के लिये । आपको समाज में कदम नहीं रखना है बगैर जीव जाने-देखे । आपको इस समाज रूपी संसार में कदम नहीं डालना है बिना आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म जाने-देखे । आपको इस जीव और आत्मा सबसे पहले नम्बर पर जान-देख लेना समझ-परख लेना था और तब अपने शरीर को इस परिवार के माध्यम से समाज में डालना था । आपने भारी अपराध किया । आप बनते रहिये अपने को विद्वान जी, जानकार जी; ग्रन्थ की परिभाषा में मूढ़ ही कहलायेंगे। चार अक्षर पढ़-लिख लिये हैं चार पैसे की सर्विस करने में लगे हैं पेट भर रहा है, ऐंठ कर बोलते हैं-- मैं धरम-वरम कुछ नहीं मानता । ये कुल सब कपोल कल्पना है । अरे मूढ़ कहीं के कपोल कल्पना में तो तू जीवन जी रहा है । जहाँ जीवन जी रहा है जिसको पकड़कर के तू बैठा है वह कपोल कल्पित है, कपोल कल्पित । ये दुनिया ! कपोल कल्पित है । ये दुनिया कपोल कल्पित है, ये दुनिया । आप मेरे जीव, ईश्वर, परमेश्वर दिखाने पर असम्भाव्यता और आश्चर्यमयता दिखा रहे हो । अरे जीव जनाने-दिखाने की बात कर रहा हूँ तो अरे चलो मूर्खों का प्रलाप है वो कल्पना है । अरे मूढ़ तो वह है जो जीव देखा न हो, जाना न हो । गीता मैं ही पढ़ता हूँ आप  नहीं ? भगवान् कृष्ण केवल मेरे हैं आपके नहीं ? गीता मेरे लिये अलग बनी है आपके लिये अलग ? गीता के श्लोक का आपके लिये अलग अर्थ है और मेरे लिये गीता का श्लोक अलग है ? ऐसा नहीं है । सबकेे लिये एक ही है । आपने गीता के श्लोक के अर्थ को कभी जानने की कोशिश किया ।
उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुज्जानं वा गुणान्वितम् ।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ।। गीता 15/10
     शरीर से निकलते हुये को जो शरीर से निकलकर जाता है जो आपको मुर्दा बनाता है जो इन शरीरों को मुर्दा बना देता है, जिसके रहने से जीवित हैं और छोड़ देने के बाद मृत हो जायेंगे । जिसके रहने से जीवित हैं और छोड़ देने से मृत हो जायेंगे ।
      बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ! जिसके रहने से आप जीवित हैं, जिसके छोड़ते ही आप मृत हो जायेंगे उसके इस शरीर से निकलते हुये को उत्क्रामन्तं कहते हैं । उत्क्रामन्तं यानी शरीर से निकलते हुये को स्थितं वापि अथवा शरीर में स्थित हुये को भी भुज्जानं सब कुछ भोगते हुये को, सब कुछ भोगते हुये को भुज्जानं वा गुणान्वितम् सभी गुणों को घेरकर स्थित है जो, सभी गुणों को घेरकर सभी गुणों से घेरकर स्थित है । विमूढा नानुपश्यन्ति वे सब मूढ़ हैं जो नहीं देखते । जो पढ़े-लिखे विद्वान जी तो विशेष मूढ़ हैं वो तो विशेष मूर्ख हैं, विशेष मूढ़ । पढ़े क्या जब अपने ही को नहीं देखे । तो नहीं देखने वाले विशेष मूढ़ हैं मूढ़ । पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ज्ञानीजन ज्ञानदृष्टि से देखते हैं देखते । पश्य धातु है पश्य माने  देखना । पश्यति पश्यतः पश्यन्ति पश्यसि पश्यसः पश्यत् पश्याम् पश्यावः पश्यामः ये धातु रूप चलता है पश्य का । तो ज्ञानीजन ज्ञानदृष्टि से देखते हैं । देखना शब्द है देखना । जो नहीं देखते हैं वे विशेष मूढ़ हैं मूढ़ । भगवान् कृष्ण कह रहे हैं हम आपको मूढ़ कह दें तो शायद आपको तकलीफ पीड़ा हो जाये । आप कहें कि वाह सन्त जी तो हमको मूढ़ बना रहे हैं । हमको मूढ़ कह रहे हैं । हमको क्या गर्ज पड़ी है आपको मूढ़ कहने की । लेकिन आप हैं ही तो हम नहीं ही कहना चाहेंगे तो कहे बिना आप बच जायेंगे क्या ? एक तरफ तो आप दर्शन को कह रहे हैं अरे चलो इन मूर्खों का प्रलाप है ऐसा कहाँ होता है कौन करता है ? ये सही है कि ऐसा कहाँ होता है कहीं नहीं होता है । ये भी सही है कि धरती पर ऐसा कोई गुरु जी नहीं है जो कह दे मैं जीव जानता देखता हूँ मैं जीव दिखा दूँगा। धरती पर एक गुरु जी नहीं है एक गुरु जी । आप जाँच कर लीजिये महात्मा जी लोगों को । एक महात्मा जी  गुरु जी नहीं है धरती पर जो कह दे कि मैंने जीव जाना-देखा है, मैं दिखा दूँगा । मैंने तो कहा है मैं 22-23 तक यहाँ रहूँगा । जबलपुर में बहुत महात्मा जी लोगों के, बहुत महात्मा जी लोगों के आफिस कार्यालय होंगे । चारों तरफ आपके एक से एक गुरु जी के जानकार और मार टी0वी0 और चैनल पर आप सब देख रहे होंगे । टेलीफोन नंबर सब जगह के हैं, मोबाइल नंबर सब जगह के प्रायः मिल रहे हैं, किताबों में सब जगह हैं । किसी गुरु जी का पता लेकर के जाइये और यह बात गलत ठहरा दे कोई, यह बात कोई सप्रमाण गलत ठहरा दे तो हम हर सजा भुगतने को तैयार हैं । है ही नहीं कोई, अरे देवलोक तक में कोई कह दे मैंने जीव जाना-देखा है धरती की क्या बात है ? देवलोक तक कोई नहीं है जो कह दे कि मैंने जीव जाना-देखा है । और भगवान् कृष्ण क्या कह रहे हैं ? जो नहीं देखता है वो विमूढ़ है विमूढ़ । यानी क्या इसका अर्थ हुआ ? मानव जीवन को उतारना ही नहीं चाहिये था परिवार-संसार में इसको जाने-देखे बगैर । इसको जाने-देखे बगैर आप परिवार संसार समझ ही नहीं सकते है। जब तक जीव नहीं जानेंगे-देखेंगे इस संसार को जान-समझ ही नहीं सकते । ये संसार क्या है ? कैसा है ? ये आप जान-समझ सकते ही नहीं । इसकी जानकारी ही नहीं मिलेगी ।
बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ! बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय !! आप बन्धु लोगों को कितना बड़ा आश्चर्य लगता है! आपको आश्चर्य लग रहा है कि जीव देखने को मिलेगा । मुझे आश्चर्य लग रहा है कि आप क्या सोचने लगे । ये आप क्या सोचने लगे ?
     बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ! आखिर आप लोग क्या सोचने-समझने लगे ? यानी इस जीवन को जाने-देखे बगैर आप मनुष्य ही नहीं कहला सकते । यह एक सहज बात है । पूछा जाय आप कौन ? तो कह दें न पता । पूछा जाय कहाँ से आये हैं ? कह दें न पता । पूछा जाय आप कहाँ ठहरे हैं ? कह दें न पता । पूछा जाय किसलिये यहाँ ठहरे-बैठे हैं ? कह दें न पता । अरे भाई जाना कहाँ है ? न पता । किस बात के आप आदमी हैं ? यदि सड़क पर आप खड़े हों । इन्सपेक्टर साहब आवें । आप उससे कहो न पता । पूछे कहाँ रहते हो ? कह दें न पता । पूछे यहाँ क्यों खड़े हो ? कह दें न पता । कहेंगे जाना कहाँ है ? कह दें न पता । कहेंगे कि चलो हमारे गाड़ी में । चलो हम तेरे को तेरा पता बताते हैं । और कोई अपराध नहीं, कोई गलती नहीं । धारा 109 में ले जाकर सीधे जेल में डाल देगा । 109 में सीधे जेल में डाल देगा । जाओ जाओ वहाँ घर में जाओ । तेरा पता लेकर असली में वो लेकर तेरे को इधर से लेकर जायेगा । अब नाम पता लाने में हजारों घुल जायेंगे । हजारों रुपया घुल जायेंगे उनको लाने में । आपको जब इतना पता ही नहीं कि मैं कौन ? मैं शरीर हूँ, कि जीव हूँ, कि आत्मा हूँ, कि परमात्मा हूँ । ये ‘हम’ शरीर है कि जीव है कि आत्मा है कि परमात्मा है ? जब ये पता ही नहीं आपको अपना, आप कहाँ से आये हैं, पता ही नहीं कि ‘हम’ जीव कहाँ से आया है । फट से बताते हैं जब पूछा गया आपको कि फट शरीर का नाम बता देते हैं । पूछा जाये कि भइया आप कहाँ से आये हैं तो फट गाँव से बता देते हैं । पूछा जाये आप कहाँ ठहरे हैं तो उस क्वार्टर मकान का नाम बता देते हैं । यानी इस तरह से पूछा जाये कि आप किसलिये आये हैं ? पूछा जाये आप किसलिये आये हैं ? तो काम पेशा है जो काम रहा है उसको फट से बता देते हैं । कहाँ जाना है तो बता देते हैं । ये तो शरीर का हुआ न ? पूछा तो आपका जा रहा है न कि आप कौन ? ये तो शरीर का नाम पता बता रहे हैं। ये तो शरीर का कार्य बता रहे हैं न ? ये  शरीर का रहना-आना जाना बता रहे हैं न ? पूछा तो आपका जा रहा है न ? तो आप यानी ये ‘हम’ शरीर है । हमारा नाम हरगोविन्द है आपने बता दिया । क्या आपने जानने का कोशिश किया कि ‘हम’ हरगोविन्द है ? ‘हम’ विजय है ? ‘हम’ शरीर है ? ‘हम’ जब शरीर नहीं है तो ‘हम’ कौन है ? ‘हम’ कहाँ से आया है ? ‘हम’ शरीर में कहाँ ठहरा है ? ‘हम’ इस शरीर में किसलिये आया है ? इस शरीर छोड़ने के बाद ये ‘हम’ कहाँ जाता है ? ये जैसे शरीर के लिये है 5 प्रश्न । वैसे ही जीव के लिये है । वैसे ही आत्मा के लिये भी है । वैसे ही आत्मा के लिये, वैसे ही परमात्मा के लिये भी है । आपने शरीर का पता तो बतला दिया। पूछा गया आपके विषय में । आपने बतलाया शरीर के विषय में । दुहराया गया कि मैं शरीर का नहीं पूछ रहा हूँ । क्या आप शरीर हैं ? पूछा जाये कि क्या ये ‘हम’ शरीर है ? कि आप बता रहे हो हमारा नाम हरगोविन्द है । ‘हम’ हरगोविन्द हैं, हम विजय हैं, हम रमेश हैं, हम महेश हैं । क्या ये आपके नाम है कि आपके शरीर का नाम है ? आपको कहना पड़ेगा कि मेरे शरीर का नाम है । आपको सच्चाई कहना पड़ेगा कि मेरे शरीर का नाम है और जब ये आपके शरीर का नाम है तो आपका नाम क्या है ? आप कहाँ से आये हैं ? आप कहाँ ठहरे हैं ? आप किसलिये आये हैं और आपको कहाँ जाना है ? क्या कोई अपना नाम पता न दे वो आदमी कहलायेगा ? पशु यानी पागल, पशु नहीं तो पागल। यदि तीसरा कोई नाम हो तो गोदी का बच्चा, शिशु । पशु नहीं तो पागल, पागल नहीं तो अबोध शिशु । क्या वह मनुष्य कहलाने का हकदार है जिसको अपना नाम ही पता न हो, जिसको अपने नाम पता के विषय में जानकारी न हो । जो अपने विषय में न जानता हो कि मैं कौन हूँ ? मैं क्या हूँ ? मैं कहाँ रहता हूँ ? किसलिये आया हूँ ? कहाँ जाना है ? क्या करना है ? जिसको कुछ पता ही न हो अभी मनुष्य ही कहलायेगा ? वह भी मनुष्य ही कहलायेगा ? नहीं कहलायेगा । यदि मनुष्य शरीर में है तो आपकी टाइटिल विशेष मूढ़ की होगी । बल्कि हम तो बटवारा करते हैं कि अनपढ़, अशिक्षित हैं तो चल भाई मूढ़ से ही काम चल जायेगा। पढ़े-लिखे विद्वान हैं तो और ही विशेष प्रकार के मूढ़ हैं । क्या पढ़ा आपने जब अपने ही को नहीं जाना । क्या पढ़ा आपने जब अपने ही को नहीं जाना । कौन सी पढ़ाई है ? सारी पढ़ाई उस मूढ़ता में गई । सारी पढ़ाई-लिखाई मूढ़ता में गई । तो जब आपको अपना ही अता-पता नहीं है तो आपको अपने कर्तव्य का अता-पता कैसे होगा ? अस्तित्त्व पद-पोस्ट का पता ही नहीं कर्तव्य की जानकारी कहाँ से आयेगी और जब अस्तित्त्व कर्तव्य पता नहीं तो आप करेंगे क्या ? अस्तित्त्व कर्तव्य का पता ही नहीं चलेगा तो आप करेंगे क्या ? जो कर रहे हैं ये क्या पता कि ये झूठ है कि ये सत्य है । ये आपके पतन-विनाश वाला है कि ये उत्थान कल्याण वाला है।
       ऐसा है आज पहला दिन है । हमको तो आयोजक महोदय जी लोग रोक ही रहे थे । हम तो आने को मंच पर जबदस्ती आ गये हैं । निकल गये आने के लिये । पता नहीं ये लोग कैसे क्या कर रहे हैं । ये आप लोग कहेंगे हमको मौका शंका-समाधान का नहीं दिया जायेगा क्या ? वो हमारा मुख्य कार्यक्रम है । शंका-समाधान इस सत्संग से अधिक महत्वपूर्ण होता है ।
          बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ! तो हम चाहेंगे इस कार्यक्रम को, शंका-समाधान का भी मौका देने के लिये । कल भइया थोड़ा सा इस साधन को इधर कर लेना । इस साधन को आप लोग कल थोड़ा और खिसका लेना । यहाँ कुर्सी माइक रहेगा ।
       तो जिस बन्धु को हमारे सत्संगों कार्यक्रमों का यह मुख्य कार्यक्रम होता है । जिस बन्धु को मेरे खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई जानकारी है । जाकर के सड़क चैराहा में बोलने की अपेक्षा है यहाँ समाज में बोलना अधिक अच्छा रहेगा न कि सभी लोगों को सुनने-जानने को मिलेगा । एक बात मैंने बताया आप लोगों को कि मैं जैसा जीवन जीता हूँ, थोड़ा अपनत्व में आइये मेरे साथ सारे रहस्यों को जान लीजिये । मैं कभी किसी के साथ धोखा का जीवन नहीं जीना चाहते हैं । मैं एक बिल्कुल ऐसा जीवन जीना चाहता हूँ कि थोड़ा सा समझदारी का प्रयोग करेंगे तो तब जानने-देखने को मिल जायेगा । किसी को मेरे विषय में किसी को भी ऊल-जलूल या किसी भी प्रकार का भय शंका-संदेह है यदि मेरे खिलाफ जानकारी है तो पहले उसी को रखें, समाज जान ले । दूसरे नम्बर पर ऐसा कुछ नहीं है तो दूसरे नम्बर पर मेरे कोई बात यदि गलत लगी हो, कुछ मैंने बहुत बढ़-चढ़ के बातें कर लिया है ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर भी आपके इस मानव चोले के नीचे है नीचे । यह मानव जीवन आपको मिला है इसको यदि तत्त्वज्ञान से जोड़ दें और तत्त्वज्ञान से जोड़कर के इसको ले चलें तो ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर भी नीचे है नीचे। शंकरजी को चूँकि रामजी के भक्त भी थे तो इस भक्ति के चलते बड़ा भाई के रूप में भले दिखाई दे जायेंगे ।
संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस